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बिहार में जमीन की बढ़ी तपिश: ‘कट्टे’ नहीं अब ‘कट्ठे’ की लड़ाई, सर्किल रेट में 400% तक बढ़ोतरी की तैयारी
- Reporter 12
- 25 Dec, 2025
बिहार की सियासत में कभी ‘कट्टा’ शब्द गूंजता था, लेकिन अब राज्य में असली गर्मी ‘कट्ठे’ यानी जमीन को लेकर है। बढ़ती आबादी, सीमित जगह और अपने घर का सपना—इन सबने जमीन को सबसे बड़ा कारोबारी हथियार बना दिया है। खासकर पटना और उसके आसपास के इलाकों में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। नौबतपुर जैसे इलाके अब जमीन के सौदों का नया हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं।
बिहार में आम बोलचाल में भी यह फर्क साफ दिखता है। मकान बनवाने पहुंचे लोगों को देखकर राजमिस्त्री तक अंदाजा लगा लेते हैं कि खर्च ‘कट्टे’ का है या ‘कट्ठे’ का। यानी पैसा किसी गलत कमाई से आया है या जमीन बेचने से। मौजूदा हालात में जमीन बेचकर आए पैसों की चर्चा ज्यादा है, क्योंकि बिल्डरों की नजर हर उस प्लॉट पर है, जहां कुछ कट्ठे जमीन लेकर बहुमंजिला फ्लैट खड़े किए जा सकते हैं।
यहीं से शुरू होता है असली खेल। कागजों में जमीन का सरकारी सर्किल रेट कुछ हजार या लाख दिखाया जाता है, जबकि हकीकत में सौदा करोड़ों में होता है। रजिस्ट्री कम कीमत पर होती है, असली भुगतान नकद में। इससे जमीन मालिक और बिल्डर दोनों फायदे में रहते हैं, लेकिन सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।
अब इसी खेल पर लगाम कसने की तैयारी बिहार सरकार कर रही है। सरकार सर्किल रेट को बाजार भाव के आसपास लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। प्रस्ताव है कि कई इलाकों में जमीन के सर्किल रेट को मौजूदा दर से चार गुना तक बढ़ाया जाए। जहां अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, वहां 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की योजना है।
राजधानी पटना के पॉश इलाकों—जैसे पश्चिमी और पूर्वी बोरिंग कैनाल रोड—में फिलहाल सर्किल रेट पहले से ही ऊंचा है, लेकिन वहां भी नए सिरे से समीक्षा की जा रही है। माना जा रहा है कि जल्द ही यह प्रस्ताव कैबिनेट के सामने जाएगा।
अगर यह योजना लागू होती है, तो बिहार में जमीन के सौदों की तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है। जहां एक तरफ सरकार का राजस्व बढ़ेगा, वहीं काले धन से होने वाले खेल पर भी कुछ हद तक ब्रेक लगने की उम्मीद है। अब देखना यह है कि ‘कट्ठे’ की इस गर्मी पर सरकार कितना असर डाल पाती
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