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मौलाना मजहरुल हक़ की 159वीं जयंती: हिंदू-मुस्लिम एकता और कौमी सद्भाव के प्रतीक को याद किया गया
- Reporter 12
- 22 Dec, 2025
सारण/छपरा: स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक सुधारक मौलाना मजहरुल हक़ की 159वीं जयंती आज पूरे श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। उनके जीवन और योगदान ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया, बल्कि आज भी समाज में सौहार्द और राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम है।
मौलाना मजहरुल हक़ का जन्म 22 दिसंबर 1866 को पटना जिले के मनेर थाना क्षेत्र के ब्रह्मपुर गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पटना कॉलेज और लखनऊ के केनिंग कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और इंग्लैंड में बैरिस्टरी की डिग्री हासिल की। इंग्लैंड में रहते हुए उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई, जिसने उनके जीवन को नई दिशा दी।
भारत लौटने के बाद उन्होंने न्यायिक सेवा से इस्तीफा देकर छपरा में वकालत शुरू की और सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए। हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक मौलाना मजहरुल हक़ ने छपरा नगर पालिका के उपाध्यक्ष और सारण जिला परिषद के प्रथम अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उनका प्रमुख निवास “हक मंजिल” आज भी अरबी-फारसी-उर्दू विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र के रूप में कार्यरत है।
मौलाना ने देश में शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने पैतृक घर को मदरसा और प्राथमिक विद्यालय के लिए दान किया, ताकि हिंदू और मुस्लिम बच्चे एक साथ शिक्षा प्राप्त कर सकें। महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने और पर्दा प्रथा के खिलाफ जनजागरण करना भी उनके प्रयासों में शामिल था।
सारण में उनके सम्मान में बनवाया गया ‘एकता भवन’ और पटना स्थित ‘सदाकत आश्रम’ आज भी राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक बने हुए हैं।
मौलाना का यह कथन आज भी प्रासंगिक है:
“हम हिन्दू हों या मुसलमान, हम एक ही नाव पर हैं सवार; हम उबरेंगे तो साथ, डूबेंगे तो साथ।”
असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने ऐश्वर्य और आराम त्याग कर फकीरी जीवन अपनाया और 2 जनवरी 1930 को अपने घर के बगीचे में अंतिम सांस ली। उनके योगदान और विचार आज भी सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा बने हुए हैं।
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