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मांझी का रिएक्शनरी अंदाज: राज्यसभा चुनाव में चिराग पासवान को चुनौती, दलित राजनीति में सियासी सेंध

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पटना: बिहार की राजनीति में दलित समाज के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (HAM-S) के संस्थापक अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने सक्रिय रुख अपनाया है। राज्यसभा की चुनावी लड़ाई में उनकी भागीदारी सिर्फ़ अचानक उठाया गया कदम नहीं है, बल्कि यह राज्य में बदलती दलित राजनीति का रणनीतिक संकेत माना जा रहा है।
राज्य के राजनीतिक गलियारों में इस कदम को मांझी का “रिएक्शनरी” अंदाज बताया जा रहा है, जो खासकर लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के प्रति उनकी स्पष्ट नाराज़गी का भी इशारा करता है। ऐसा कोई पहला मौका नहीं है जब मांझी ने चिराग पासवान और उनके नेतृत्व वाली पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त की हो।
HAM-S प्रमुख का यह रुख इस बात की ओर भी इशारा करता है कि आगामी विधानसभा चुनावों और राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए दलित समाज के वोट बैंक को सशक्त और संगठित करना उनके लिए प्राथमिकता है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मांझी की यह रणनीति सिर्फ़ राज्यसभा चुनाव तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी और बयानबाजी को और गंभीरता से देखा जाएगा।
इसके अलावा, राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि मांझी का यह कदम बीजेपी समेत अन्य NDA सहयोगियों पर भी असर डाल सकता है, क्योंकि वे दलित वोट बैंक में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले महीनों में बिहार की राजनीति में मांझी की भूमिका और उनकी चाल पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों की संख्या बढ़ती जा रही है।

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