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वीर बाल दिवस: साहस और बलिदान की अमर कहानी
- Reporter 12
- 26 Dec, 2025
नई दिल्ली/भारत:भारतीय इतिहास में कुछ घटनाएँ केवल अतीत का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं। ऐसा ही उदाहरण है वीर बाल दिवस का। देशभर में 21 दिसंबर से 27 दिसंबर तक ‘वीर बाल सप्ताह’ मनाया जाता है। इस दौरान दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी और उनके परिवार के धर्म, सत्य, न्याय और मानवता की रक्षा के लिए किए गए अद्वितीय बलिदान को याद किया जाता है।
इतिहास की पृष्ठभूमि
17वीं शताब्दी के अंत में मुगल शासन का अत्याचार चरम पर था। जबरन धर्म परिवर्तन, अन्याय और अत्याचार आम थे। ऐसे समय में गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिससे लोगों को अन्याय के खिलाफ खड़े होने का साहस मिला।
1704 ई. में मुगल सेना और पहाड़ी राजाओं ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया। महीनों तक चले इस घेराव में भोजन और पानी की भारी कमी हो गई। धोखे से दिए गए वादों पर विश्वास कर गुरु जी ने आनंदपुर छोड़ा। इस दौरान उनका परिवार बिखर गया।
चमकौर साहिब का युद्ध
21 और 22 दिसंबर 1705 को चमकौर साहिब में गुरु जी और उनके कुछ सिखों को मुगल सेना ने घेर लिया। संख्या में बहुत कम होने के बावजूद सिखों ने अद्भुत वीरता दिखाई। गुरु जी के दो बड़े पुत्र साहिबज़ादा अजीत सिंह जी और साहिबज़ादा जुझार सिंह जी ने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की।
साहिबज़ादों का बलिदान
गुरु जी के दो छोटे पुत्र साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबज़ादा फ़तेह सिंह (7 वर्ष) अपनी दादी गुजरी जी के साथ थे। उन्हें पकड़कर सरहिन्द ले जाया गया और ठंडे बुर्ज में बंद कर दिया गया। अत्याचार और धर्म बदलने के दबाव के बावजूद उन्होंने अपने धर्म और विश्वास को नहीं छोड़ा।
26 दिसंबर सिख इतिहास का सबसे हृदयविदारक दिन माना जाता है, जब छोटे साहिबज़ादों ने धर्म की रक्षा करते हुए बलिदान दिया।
इस समाचार से गुरु गोविंद सिंह जी की माता गुजरी जी ने भी प्राण त्याग दिए। उनका बलिदान त्याग, धैर्य और मातृत्व का सर्वोच्च उदाहरण है।
हमारे लिए संदेश
‘वीर बाल दिवस’ हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देता है:
सत्य और धर्म की रक्षा सर्वोच्च कर्तव्य है।
अन्याय के सामने झुकना कायरता है।
आयु या संख्या बल नहीं, साहस और विश्वास मायने रखते हैं।
बलिदान से ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है।
वीर बाल दिवस केवल इतिहास नहीं है, बल्कि यह साहस, दृढ़ विश्वास और नैतिकता का प्रतीक है, जो हर पीढ़ी को अपने मूल्यों के प्रति सजग रहने की प्रेरणा देता है।
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